ब्रह्मांड कैसे बना | How universe was created | ब्रह्माण्ड किसने बनाया | who created the universe

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अनंत ब्रह्मांड जिसकी रचना के कई कारण बताएं जाते है। परंतु कोई सिद्ध नही कर सकता की ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई। परंतु शिव पुराण के रुद्र संहिता में ब्रह्मांड की रचना और उसके नवनिर्माण की विस्तृत जानकारी है।

शिव पुराण रुद्र संहिता | ब्रह्मांड कैसे बना | How universe was created

नारद मुनीके अनुग्रह पे पितामह ब्रह्मा ने ब्रह्मांड के रचना की कहानी सुनाई।

ब्रह्मदेव बोले हे नारद जब महाप्रलय आया था और सब कुछ नष्ट हो गया था, तब चारो ओर सिर्फ अंधकार ही अंधकार था। आकाश, ब्रह्मांड, तारे और ग्रह सब अंधकार में विलिन हो गए थे। दिनरात, अग्नि जल, चंद्र, नक्षत्र सब नष्ट हो गए थे। शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नही था। प्रलय के समय शिव और आदिशक्ति शिव द्वारा निर्मित शिव लोक में स्थित थे। शिवजी ने इस स्थान का नाम आनंदवन रक्खा है।

एक दिन आनंदवन में घूमते समय शिव और शक्ति के मन में किसी दूसरे पुरुष की रचना का विचार आया। उन्होंने सोचा की नई सृष्टि की रचना कर उसका कार्य भार किसी और को सौप के स्वयं काशी में विराजमान हो जाए। यह सोचकर उन्होंने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया, जिससे सत्व गुण वाले सुंदर और गंभीरता के अथाह सागर के समान दिव्य पुरुष को प्रकट किया। शिव ने उन्हें विष्णु नाम दिया क्युकी वो सर्वत्र व्यापक होंगे। भगवान शिव के आदेश का पालन करते हुवे वो दिव्य पुरुष शिवलोक से शून्य की ओर चले गए।

शून्य में प्रवेश करते ही चारो ओर प्रकाश फैल गया। उन दिव्य पुरुष के आगमन से मानो सारे अंधकार का विनाश हो गया हो। शून्य में आके भगवान विष्णु ने १२ वर्षो तक दिव्य तप किया। तपस्या के कारण उनके देह से अनेक जलधाराएं निकलने लगी। वो दिव्य जल अपने स्पर्श मात्र से सभी पापो का विनाश करने वाला था। उस जल में भगवान विष्णु ने स्वयं शयन किया। नार अर्थात जालमे वास करने के कारण उनका नाम नारायण पड़ा। नारायण के दिव्य शरीर से सभी २४ तत्त्वों की उत्पत्ति हुई, और उन तत्त्वों को ग्रहण करके परम पुरुष नारायण महेश्वर की आज्ञा से जल में सो गए।

जब नारायण शयन कर रहे थे, तब उनके नाभी से एक विशाल कमल प्रकट हुवा। तत्पश्चात भगवान शिव ने अपने दाहिने अंग ब्रह्मा को उत्पन्न किया। महादेव ने अपनी माया से प्रभावित भगवान विष्णु की नाभी कमल में ब्रह्मा को डाल के लीलापूर्वक उन्हें कमल से उत्पन्न किया। भगवान शिव के माया से मोहित होके ब्रह्मा की ज्ञानशक्ति दुर्लभ हो गई थी। भगवान ब्रह्मा को कमल के अतिरिक्त कुछ और नजर ही नही आ रहा था। वो नही जानते थे की उनका निर्माण किसने किया, और वो कौन है। कुछ क्षण बाद महेश्वर की माया स्थिर हुई और ब्रह्मा को बुद्धि प्राप्त हुईं। ब्रह्मा समझ गए की मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर इस कमल के उद्गम स्थान पे जाके प्राप्त हो जायेगा। ब्रह्मा कमल का उद्गम स्थान ढूंढने के लिए नीचे की ओर चल पड़े, परंतु उन्हें कमल का उद्गम स्थान नही मिला।

ब्रह्मदेव बोले हे नारद जब महाप्रलय आया था और सब कुछ नष्ट हो गया था, तब चारो ओर सिर्फ अंधकार ही अंधकार था। आकाश, ब्रह्मांड, तारे और ग्रह सब अंधकार में विलिन हो गए थे। दिनरात, अग्नि जल, चंद्र, नक्षत्र सब नष्ट हो गए थे। शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नही था। प्रलय के समय शिव और आदिशक्ति शिव द्वारा निर्मित शिव लोक में स्थित थे। शिवजी ने इस स्थान का नाम आनंदवन रक्खा है।

एक दिन आनंदवन में घूमते समय शिव और शक्ति के मन में किसी दूसरे पुरुष की रचना का विचार आया। उन्होंने सोचा की नई सृष्टि की रचना कर उसका कार्य भार किसी और को सौप के स्वयं काशी में विराजमान हो जाए। यह सोचकर उन्होंने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया, जिससे सत्व गुण वाले सुंदर और गंभीरता के अथाह सागर के समान दिव्य पुरुष को प्रकट किया। शिव ने उन्हें विष्णु नाम दिया क्युकी वो सर्वत्र व्यापक होंगे। भगवान शिव के आदेश का पालन करते हुवे वो दिव्य पुरुष शिवलोक से शून्य की ओर चले गए।

शून्य में प्रवेश करते ही चारो ओर प्रकाश फैल गया। उन दिव्य पुरुष के आगमन से मानो सारे अंधकार का विनाश हो गया हो। शून्य में आके भगवान विष्णु ने १२ वर्षो तक दिव्य तप किया। तपस्या के कारण उनके देह से अनेक जलधाराएं निकलने लगी। वो दिव्य जल अपने स्पर्श मात्र से सभी पापो का विनाश करने वाला था। उस जल में भगवान विष्णु ने स्वयं शयन किया। नार अर्थात जालमे वास करने के कारण उनका नाम नारायण पड़ा। नारायण के दिव्य शरीर से सभी २४ तत्त्वों की उत्पत्ति हुई, और उन तत्त्वों को ग्रहण करके परम पुरुष नारायण महेश्वर की आज्ञा से जल में सो गए।

जब नारायण शयन कर रहे थे, तब उनके नाभी से एक विशाल कमल प्रकट हुवा। तत्पश्चात भगवान शिव ने अपने दाहिने अंग ब्रह्मा को उत्पन्न किया। महादेव ने अपनी माया से प्रभावित भगवान विष्णु की नाभी कमल में ब्रह्मा को डाल के लीलापूर्वक उन्हें कमल से उत्पन्न किया। भगवान शिव के माया से मोहित होके ब्रह्मा की ज्ञानशक्ति दुर्लभ हो गई थी। भगवान ब्रह्मा को कमल के अतिरिक्त कुछ और नजर ही नही आ रहा था। वो नही जानते थे की उनका निर्माण किसने किया, और वो कौन है। कुछ क्षण बाद महेश्वर की माया स्थिर हुई और ब्रह्मा को बुद्धि प्राप्त हुईं। ब्रह्मा समझ गए की मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर इस कमल के उद्गम स्थान पे जाके प्राप्त हो जायेगा। ब्रह्मा कमल का उद्गम स्थान ढूंढने के लिए नीचे की ओर चल पड़े, परंतु उन्हें कमल का उद्गम स्थान नही मिला।

अपने प्रयासों में असफल हुवे ब्रह्मदेव निराश हो गए, तब वहा एक दिव्य आकाशवाणी हुई। “तपस्या करो।”
आकाशवाणी सुनके चतुर्मुख ब्रह्मा ने १२ दिव्य वर्षो तक घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होके भगवान विष्णु शयन निद्रा से बाहर आके उन्हें दर्शन दिया। और बोले हे महाब्रह्मण मैं ही तुम्हारा पिता हू। परंतु महेश्वर की माया के प्रभाव से ब्रह्मदेव और नारायण के बीच विवाद छिड़ गया। दोनो में प्रचंड युद्ध छिड़ गया की दोनो में बड़ा कौन है। रचनात्मक शक्ति वाले ब्रह्मा और पालनहार विष्णु के अस्त्र शस्त्रों के टकराव से अनेकों तारो और ग्रहों की रचना और उनका क्रमशः विनाश होने लगा। ऐसे असंतुलन की परिस्थिति में भी दोनो रुकने को तैयार नही थे।

तभी दोनो के बीच एक प्रचंड और प्रकाशमय अग्निस्तम्भ प्रकट हुवा, जिसे देख दोनो देव स्तब्ध रह गए। दोनो में विवाद रुक गया। फिर एकाएक दिव्य वाणी सुनाई दी, “मैं करूंगा निर्णय की दोनो में बड़ा कौन है”।

जो मेरा आरंभ या अंत ढूंढेगा वो ही बड़ा कहलाएगा। फिर ब्रह्मदेव आरंभ ढूंढने ऊपर की ओर और विष्णु अंत ढूंढने नीचे की ओर चल दिए। वर्षो बीत गए पर न आरंभ मिला और ना अंत। अपने प्रयत्नों में विफल हुवे भगवान विष्णु वापस आके बोले की ये नाथ, ये देवों के स्वामी, ये महाबाहु आपका कोई अंत नहीं है, इसीलिए स्वामी आज से आप अनंत के नाम से जाने जायेंगे। मैं आपका सेवक आपकी वंदना करता हु। कुछ समय पश्चात वहा ब्रह्मदेव अपने साथ केतकी के फूल को लेके आए और बोले हे दिव्य अग्नि मैने आपका आरंभ ढूंढ लिया है, और केतकी का ये फूल मेरी सफलता का साक्षी है। केतकी का फूल श्रीनारायण के दिव्य देह से ही उत्पन्न हूवा था। शिव की लीला में फसके केतकी के फूल ने भी ब्रह्मदेव का साथ देते हुवे असत्य कहा की ब्रह्मदेव ने आरंभ ढूंढ लिया है।

तभी अग्नि स्तंभ में प्रचंड विस्फोट हुवा और चारो ओर अग्नि का तेज फैल गया। मानो जैसे अंधकार में कोई दिव्य प्रकाश की वर्षा हो गई हो। कुछ छन बाद प्रकाश लुप्त हो गया और अग्नि स्तंभ एक दिव्य पुरुष में परिवर्तित हो गया।

वो प्रथम बार था जब किसने शिव को उनके दिव्य पुरुष रूप में देखा था।

शिव बोले : असत्य है ये कहेंना की तुमने आरंभ ढूंढ लिया। और साथमे तुम झूठा प्रमाण भी ले आए हो। तुम्हारे इसी आचरण के कारण तुम्हारी कोई पूजा नही करेगा। और केतकी असत्य का साथ देने के कारण तुम्हे मेरी पूजा में सम्मिलित नही किया जायेगा। तुम्हारे द्वारा मेरी पूजा वर्जित होगी। जो भी तुम्हे मेरी पूजा में अर्पित करेगा, उसे मेरी स्तुति का कोई फल प्राप्त नही होगा। और विष्णुजी के सत्य आचरण से प्रसन्न होके उन्हें अपना सबसे प्रिय बताया और उन्हें अपनी निश्चल भक्ति प्रदान की। अपने कृत्य का आभास होते ही ब्रह्मदेव ने महादेव से क्षमा मांग उनकी स्तुति की। और आरंभहीन होने के कारण शिव को आनादि और स्वयंभू नाम दिया। फिर भगवान शिव ने विस्तार से उन्हें तत्व ज्ञान कराया।

ब्रह्माण्ड किसने बनाया | who created the universe

ब्रह्मा जी और विष्णु जी को तत्व ज्ञान कराने के बाद भगवान सदाशिव ने दोनों के कार्य क्षेत्र का विभाजन कर दिया। ब्रह्मा जी से कहा कि आप सृष्टि का सृजन करें और सृष्टि के सभी जीव-जंतुओं, प्रकृति और मनुष्य के आप ही अधिपति होंगे। विष्णु जी जगत का पालन करेंगे। इतना कहकर भगवान सदाशिव अंतरध्यान हो गए। ब्रह्मा जी ने सबसे पहले जल को उत्पन्न किया।

जल है तो जीवन है। इसी जीवन की अवधारणा को भगवान शंकर ने ब्रह्मा जी को समझाया और ब्रह्मा जी ने कमंडल से इसकी उत्पत्ति करके सब प्राणियों को समझाया।

ब्रह्मा जी ने जल छिड़ककर विशाल अंड का निर्माण किया। सदाशिव ने उसमें चेतना डाली। ( सभी प्राणियों का जन्म इसी अंडकोष से होता है)। चेतना पड़ते ही सहस्त्रों सिर, नेत्र और चारण सहित अंग निकले और पृथ्वी को घेर लिया। भगवान विष्णु इनके अधिपति हो गए। इसके बाद ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना की। सबसे पहले पाप सृष्टि की रचना हुई। इसमें तम और अविद्या की प्रधानता थी। इसके बाद मनुष्यों की सृष्टि की रचना की गई। फिर जीव-जंतुओं का निर्माण हुआ। रजोगुणी मनुष्यों की उत्पत्ति करने से ब्रह्मा जी को संतोष नहीं हुआ।

आठ प्रकार के सृष्टि सर्गों के निर्माण करने के बाद भी इसको लेकर चिंतित थे कि इनका जीवन कैसा होगा। इनकी रचना तो आसान थी, सो हो गई। लेकिन क्या ये कालजयी होंगे या इनको भी मोक्ष मिलेगा। यह ऐसा प्रश्न था जो ब्रह्मा जी को भी परेशान कर रहा था। सनदकुमारों की रचना करने के बाद भी सृष्टि जहां थी, वहीं ठहर गई। ब्रह्मा जी फिर से भगवान शंकर का तप करने लगे कि इस संकट से मुक्ति दिलाइये। शंकर जी ने दर्शन दिए। त्रिकालदर्शी भगवान शंकर ब्रह्मा जी के त्रिकुट से प्रकट हुए। मस्तक में गंगा की धार सुशोभित हो रही थी। उनके पांच मुख और चार हाथ थे।

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